पंचानन सिंह बगहा पश्चिमी चंपारण।
बगहा।अनुमंडल अंतर्गत
मधुबनी गंडक पार नारायणी का पवित्र तट, पिपरिया ,छोटकीपट्टी छठ घाट छठ व्रतियों के लिये सजा दिया गया है।24घंटे के लिए, राम नाम संकीर्तन शुरू हो गया है। इस अवसर पर पूर्व प्राचार्य पं०भरत उपाध्याय ने अपने शुभकामना संदेश में कहा कि –
भारतीय संस्कृति में सूर्य को ऊर्जा का स्रोत माना गया है।
भारत में वैदिक काल से सूर्य उपासना व्यापक रूप से प्रचलित है। हमारे यहां सूर्योपासना *छठ-व्रत* के रूप में मनाई जाती है। छठ शब्द संस्कृत के षष्ठ शब्द का तद्रूप है। इस व्रत में साधारणत: उपवास तथा परमात्मा का चिन्तन किया जाता है। इस दृष्टि से व्रत एवं उपवास दोनों का समन्वित रूप ही छठ-पर्व है। सूर्य की किरणो में छ: शक्तियां विद्यमान होती हैं।
*दहनी शक्ति* अर्थात् जलाने वाली शक्ति। *पचनी शक्ति* पाचन क्रिया करने वाली। *धूम्रा* अर्थात लोहित करने वाली। *कर्षिणी* अर्थात आकर्षित करने वाली।
*वर्षिणी* अर्थात वर्षा प्रदान करने वाली। *रसा शक्ति* अर्थात रस प्रदान करने वाली शक्ति।सूर्य की ये छ: शक्तियां ही *छठी मैया* कहलाती हैं।भारतीय संस्कृति विश्व की प्राचीनतम संस्कृतियों में से एक है। हमारी संस्कृति में पर्वों की अनुपम परंपरा है , पर्व हमारी सांस्कृतिक धार्मिक पौराणिकता व गौरवशाली इतिहास से जुड़े हैं। भारतीय संस्कृति समस्त मानव जाति का कल्याण चाहती है।
इस संस्कृति में प्राचीन गौरवशाली मान्यताओं एवं परंपराओं के साथ ही नवीनता का समावेश भी दिखाई देता है। हमारी संस्कृति विभिन्न सांस्कृतिक धाराओं का महासंगम है। यह संस्कृति गंगा- जमुनी तहजीब में परिवर्तित करती है! भारत विश्व की सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक है, इसकी बहुरंगी विविधता और समृद्धि सांस्कृतिक विरासत है। इसके साथ ही यह अपने आप को बदलते समय के साथ ढलती भी आई है। इसकी विशाल भौगोलिक स्थिति अलग-अलग है। यहां के लोग अलग-अलग भाषाएं बोलते हैं, भिन्न-भिन्न धर्म का पालन करते हैं ,किंतु उनका स्वभाव एक जैसा होता है। पर्व, किसी घर या परिवार के लिए सीमित नहीं है ,पूरा समुदाय या आस-पड़ोस सहभागी बनकर खुशियां मनाता है ।गौरवशाली संस्कृति का स्मरण करना औरों को परिचित कराना आदर्श नागरिक का कर्तव्य है। छठ महापर्व, भावी पीढ़ी को अपने सांस्कृतिक मूल्यों से जोड़ने के लिए प्रेरित करता है। भारतीय सांस्कृतिक धरोहर के लिए ऐसे पर्वों का अविस्मरणीय योगदान है।