जिंदगी में सदैव प्रयत्नशील बने रहें -पं०भरत उपाध्याय

 

पंचानन सिंह बगहा पश्चिमी चंपारण।

बगहा 18 अक्टूबर।अकर्मण्यता का नाम संतोष नहीं अपितु निरंतर प्रयत्नशील बने रहकर परिणाम के प्रति अनासक्त बने रहना ही संतोष है। संतोष का अर्थ प्रयत्न न करना नहीं है अपितु प्रयत्न करने के बाद जो भी मिल जाए उसमें प्रसन्न रहना है। लोगों के द्वारा अक्सर प्रयत्न न करना ही संतोष समझ लिया जाता है।कई लोग संतोष की आड़ में अपनी अकर्मण्यता को छिपा लेते हैं। प्रयत्न करने में, उद्यम करने में, पुरुषार्थ करने में असंतोषी रहो। प्रयास की अंतिम सीमाओं तक जाओ। एक क्षण के लिए भी लक्ष्य को मत भूलो। तुम क्या हो ? यह मुख से मत बोलो लोगों तक तुम्हारी सफलता बोलनी चाहिए।कर्म करते समय सब कुछ मुझ पर ही निर्भर है इस भाव से कर्म करो। कर्म करने के बाद सब कुछ प्रभु पर ही निर्भर है इस भाव से शरणागत हो जाओ। परिणाम में जो प्राप्त हो, उसे प्रेम से स्वीकार कर लो यही जीवन की शांति एवं आनंद का मार्ग है। प्रेम को समझने के लिए दिल चाहिए,निभाने के लिए धैर्य चाहिए और पाने के लिए भाग्य। हृदय प्रेम चाहता है,मन सफलता चाहता है, और आत्मा शांति चाहती है।परम शत्रु से भी ज्यादा घातक है गलत दिशा में भटकता हुआ आपका मन! अतः सावधान रहें। कुछ ज़रूरतें पूरी, कुछ ख्वाइशें अधूरी,बस इन्हीं सवालों का जवाब है जिन्दगी!!

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