
पंचानन सिंह बगहा पश्चिमी चंपारण।
भगवान शिव जी कहते हैं – गुरु मंत्रों मुखे यस्य,तस्य सिद्धि न अन्यथा गुरु लाभात सर्व लाभों गुरु हीनस्थ बालिश:! जिसके जीवन में गुरु नहीं हैं उसका कोई सच्चा हित करने वाला भी नहीं है। गुरुदेव भगवान को शरीर से शाष्टांग अथवा वाणी से प्रणाम! यह भी संभव न हो तो मन ही मन से नमस्कार कर लेना चाहिए। कहा गया है कि, गुरु ही एकमात्र! अपनी अपेक्षा, अपने शिष्य की महिमा बढ़ाते हैं।*
*10 जुलाई 2025 गुरुवार को गुरुपूनम (गुरुपूर्णिमा) है ।* *इस दिन सुबह बिस्तर पर हमें प्रार्थना करना है : ‘‘हे महान पूर्णिमा ! हे गुरुपूर्णिमा ! अब हम अपनी आवश्यकता की ओर चलेंगे । इस देह की सम्पूर्ण आवश्यकताएँ कभी किसी की पूरी नहीं हुई है । संतुष्टि नहीं मिली।
अपनी असली आवश्यकता की तरफ हम आज से कदम रख रहे हैं।उसी समय ध्यान केन्द्रित करना है। शरीर बिस्तर छोड़े, उसके पहले अपने गुरुदेव का मानसिक पूजन करना है। वह हमारे मन की दशा देखकर भीतर ही भीतर संतुष्ट होकर अपनी अनुभूति की झलक से आलोकित कर देंगे। उनके पास उधार नहीं है, वे तो नगदधर्मा हैं।*
*हिंदू धर्म में आषाढ़ पूर्णिमा गुरु भक्ति को समर्पित गुरु पूर्णिमा का पवित्र दिन भी है। भारतीय सनातन संस्कृति ने गुरु को सर्वोपरि माना है। वास्तव में यह दिन गुरु के रूप में ज्ञान की पूजा का है। गुरु का जीवन में उतना ही महत्व है, जितना माता-पिता का।*
*माता-पिता के कारण इस संसार में हमारा अस्तित्व होता है। किंतु जन्म के बाद एक सद्गुरु ही व्यक्ति को ज्ञान और अनुशासन का ऐसा महत्व सिखाते हैं, जिससे व्यक्ति अपने सतकर्मों और सद्विचारों से जीवन के साथ-साथ मृत्यु के बाद भी अमर हो जाता है। यह अमरत्व गुरु ही दे सकता है। सद्गुरु ही भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम बना दिये, इसलिए गुरु पूर्णिमा को अनुशासन पर्व के रूप में भी मनाया जाता है।* *इस प्रकार व्यक्ति के चरित्र और व्यक्तित्व का संपूर्ण विकास गुरु ही करते हैं। जिससे जीवन की कठिन राह को आसान हो जाती है। सार यह है कि गुरु शिष्य के बुरे गुणों को नष्ट कर उसके चरित्र, व्यवहार और जीवन को ऐसे सद्गुणों से भर देते हैं । जिससे शिष्य का जीवन संसार के लिए एक आदर्श बन जाता है। ऐसे गुरु को ही साक्षात ईश्वर कहा गया है इसलिए जीवन में गुरु का होना जरूरी है।