
पंचानन सिंह बगहा पश्चिमी चंपारण।
बगहा 12 अप्रेल।
अष्ट भुजाओं वाली मां कूष्मांडा शेर पर सवार होती हैं। वे अपने भुजाओं में कमल पुष्प, धनुष, बाण, गदा, चक्र, माला, अमृत कलश आदि धारण करती हैं। वे इस पूरे ब्रह्मांड की रचना करने वाली देवी हैं। उन्होंने अत्याचार और अधर्म को खत्म करने के लिए यह अवतार लिया। कूष्माण्डा माँ की आठ भुजाएँ हैं। अतः ये अष्टभुजा देवी के नाम से भी विख्यात हैं। इनके सात हाथों में क्रमशः कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों की शक्ती है। चैत्र नवरात्रि के चौथे दिन देवी दुर्गा के चौथे स्वरूप मां कुष्मांडा की पूजा की जाती है। ” कुष्मांडा ” नाम की उत्पत्ति संस्कृत से हुई है, जिसमें “कू” का अनुवाद “थोड़ा”, “उष्मा” का अर्थ “गर्मी” और “अंडा” का अर्थ “ब्रह्मांडीय अंडा” है। माना जाता है कि सृष्टि की उत्पत्ति से पूर्व जब चारों ओर अंधकार था और कोई भी जीव जंतु नहीं था, तो मां दुर्गा ने इस अंड यानी ब्रह्मांड की रचना की थी। इसी कारण उन्हें कूष्मांडा कहा जाता है। सृष्टि की उत्पत्ति करने के कारण इन्हें आदिशक्ति नाम से भी अभिहित किया जाता है। मां कुष्मांडा शेर पर सवारी करते हुए प्रकट होती हैं। अष्टभुजाधारी मां, मस्तक पर रत्नजड़ित मुकुट धारण किए हुए हैं। अत्यंत दिव्य रूप से सुशोभित हैं। मां कुष्मांडा ने अपनी आठ भुजाओं में कमंडल, कलश, कमल, सुदर्शन चक्र, गदा, धनुष, बाण और अक्षमाला धारण किया है। मां ” कुष्मांडा ” नाम की उत्पत्ति संस्कृत से हुई है, जिसमें ‘ कू ‘ का अनुवाद ” थोड़ा “, उष्मा का अर्थ ” गर्मी ” और ” अंडा ” का अर्थ ” ब्रह्मांडीय अंडा ” है। मां कुष्मांडा को नारंगी रंग पसंद होता है। इस दिन आप नारंगी रंग पहन कर मां दुर्गा की पूजा करें। प्रात: काल स्नान से निवृत्त होने के बाद मां कूष्मांडा को लाल रंग का पुष्प, गुड़हल या फिर गुलाब अर्पित करें। मां को सिंदूर, धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित करें। मां को दही और हलवे का भोग लगाया जाता है। नवरात्रि के चौथे दिन देवी दुर्गा के कूष्मांडा स्वरूप की पूजा का विधान है, जिनकी साधना करने पर साधक के जीवन से जुड़े सभी कष्ट दूर और कामनाएं पूरी होती हैं। इनका निवास सूर्य मंडल के भीतर के लोक में स्थित है। सूर्य लोक में निवास कर सकने की क्षमता और शक्ति केवल इन्हीं में है।