
पंचानन सिंह बगहा पश्चिमी चंपारण।
भाग – २। गतांक से आगे ….
वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब भी किसी जातक का जन्म होता है उस समय क्षितिज में मौजूद जो राशि उदय होती है उससे जातक की कुंडली की लग्न निर्धारित हो जाती है। जातक की कुंडली में सभी 9 ग्रह अलग-अलग भावों में होते हैं, जिससे शुभ और अशुभ दोनों ही तरह योग बनते हैं।
कुंडली में एक योग ऐसा बनता है जिसे मंगल दोष के नाम से जाना जाता है। मंगल दोष को “मांगलिक दोष” भी कहते हैं। मंगल ग्रह के कारण यह मांगलिक दोष पैदा होता है। जातक की कुंडली में अगर मंगल दोष है तो उसके विवाह में कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। मांगलिक होने पर वैवाहिक जीवन में तरह – तरह की दिक्कतें आती हैं।
वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब किसी भी जातक की कुंडली में मंगल ग्रह पहले, चौथे, सातवें, आठवें और बारहवें भाव में से किस एक भाव में मौजूद हो तो जातक मांगलिक दोष से पीड़ित होता है।
कुंडली में मंगल दोष होने पर व्यक्ति के विवाह में कई तरह की परेशानियां आती हैं। ज्योतिष में मंगल दोष को अशुभ माना गया है। अगर किसी लड़का या लड़की की कुंडली में मंगल दोष होता है तो उसके विवाह में कई तरह की परेशानियां आती हैं। कुंडली में मंगल दोष होने पर जीवनसाथी के साथ अच्छा जीवन नहीं बीतता है। इस कारण से किसी लड़की या लड़की के विवाह के समय मांगलिक दोष को ज्यादा महत्व दिया जाता है। किसी भी ज्योतिषी को कुंडली मिलान करते समय बहुत सावधानीपूर्वक विचार करना चाहिए। “मांगलिक दोष के प्रकार”
चंद्र मांगलिक दोष
चंद्र मांगलिक दोष किसी जातक की कुंडली में तब बनता है जब चंद्रमा से मंगल पहले, दूसरे, चौथे, पांचवें, सातवें, आठवें और बाहरवें भाव में मौजूद होता है। इस मंगल दोष के कारण जीवनसाथी के बीच कई तरह के संघर्ष देखने को मिलते हैं।
आंशिक मांगलिक दोष
आंशिक मांगलिक दोष जैसे कि इसके नाम से ही स्पष्ट है यह एक हल्का मांगलिक दोष होता है। आंशिक मांगलिक दोष तब बनता है जब मंगल कुंडली के पहले, दूसरे, चौथे, सातवें और बारहवें भाव में मौजूद होता है। इसमें जातक पर ज्यादा मांगलिक दोष का प्रभाव नहीं रहता है। इस दोष को कुछ उपाय के माध्यम से कम किया जा सकता है और जातक की आयु सीमा तक होने पर यह दोष खत्म हो जाता है। लग्ने व्यये सुखेवापि सप्तमे वाष्टमे कुजे ।
शुभ दृग्योग हीन च पति हन्ति न संशय’ : ।
“रध्रेत्ये चतनौ वोग्रे वांगे रंडा षडष्टमे ।
पाप मध्ये तनौ चेन्द्रौ स्वसुरात्मकुलक्षय” : ।
अर्थात् —
१ – पाप ग्रह अष्टम या द्वादश में हो तो वैधव्य योग होता है ।
२- पाप ग्रह लग्न में हो तो वैधव्य योग होता है ।
३- पाप ग्रह लग्न या अष्टम में हो तो वैधव्य योग होता है ।
४- पाप ग्रह षष्ठ भाव में हो तो वैधव्य योग होता है ।
५- कन्या की जन्म कुण्डली में लग्न तथा चन्द्रमा पापाक्रान्त हो तो वह कन्या अपने श्वसुर के कुल का नाश करने वाली होती है ।
भावार्थ- सप्तम भाव में सूर्य, मंगल इनसे युक्त बुध हो तो भी वैधव्य योग होता है । अर्थात् केवल “मंगल” ही वैधव्य योग कारक नहीं होता है । क्रूर ग्रह वैवाहिक जीवन को नष्ट करने वाले एवं वैवाहिक जीवन में सुख की कमी करने वाले होते है ।अनेक शास्त्रो से प्राप्त होता है कि यदि सप्तम भाव में कोई पाप ग्रह स्थित हो और शुभ ग्रह से नहीं देखा जाता हो तो वैधव्य योग न होकर पतित्यक्ता योग होता है ।
( क्रमशः ………..)