महापर्व छठ में दिखा दो देशो के संस्कृति के मिलन का अनूठा संगम

 

 

पंचानन सिंह बगहा पश्चिमी चंपारण।

वाल्मीकिनगर।महापर्व छठ पूजा का दृश्य बड़ा ही मनोरम दृश्य में दिखा। यहां सरहद की दीवारें नहीं बल्कि आस्था का जन सैलाब उमड़ा था। बिहार और नेपाल की छठव्रती बड़ी संख्या में संगम तट पर छठ पूजा के लिए पहुंचे । बताते चलें कि यहां नारायणी, तमसा और सोनभद्र के संगम स्थल पर अर्घ्य देने का अलग ही महत्व है। नदी के दोनों ओर बने घाट पर व्रतियो ने अर्घ्य दिया। छठ पूजा का यहां विहंगम दृश्य देखने को मिला। इस अवसर पर 50 हजार से अधिक की भीड़ जुटी।इंडो-नेपाल बॉर्डर स्थित संगम तट पर आस्था का जन सैलाब हर साल उमड़ता है। चार दिनों तक मनाए जाने वाले इस महापर्व का आयोजन भारत के साथ साथ नेपाल में भी एक साथ किया जाता है। दोनों देशों के छठव्रती प्राचीन काल से बड़ी संख्या में गंडक नदी के दोनों किनारों पर अर्घ्य देते आ रहे हैं।गंडक नदी के उत्तरी तट पर नेपाल वासी तो दक्षिणी तट पर भारत के छठव्रती ने धूमधाम से छठ पर्व मनाया। दोनों देशों के लोग मिलजुल कर एकसाथ मिलकर सूर्य की उपासना करते हैं। आस्था के महापर्व छठ के अलौकिक वातावरण में छठ के गीत गूंज रहे थे। दोनों तरफ छठ पर उत्साह का माहौल रहा। छठ महापर्व की महिमा सरहदों को लांघ कर नेपाल में पहुंच चुकी है। यह पर्व संस्कृति के मिलन का अनूठा संगम है। हर साल छठ के मौके पर वाल्मीकिनगर में ऐसा नजारा दिखता है। बिहार-नेपाल के लोग छठ महापर्व इकट्ठे मनाते हैं। छठ का महत्व अभूतपूर्व है। इस पर्व में उगते सूर्य से लेकर डूबते सूर्य की पूजा होती है। महापर्व छठ हमें सीख देता हैं कि जो अस्त होता हैं वह उदय भी होता हैं। अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाले महापर्व छठ इस बात का साक्षी है।सूरज की पहली किरण के साथ दूसरा अर्घ्य देकर पूरा किया छठ का व्रत।उठऊ सूरज देव भईले बिहान..ये गीत शुक्रवार की सुबह थाना क्षेत्र के सभी छठ घाटो पर व्रतियों की जुबां पर रहा। सूर्य देव के उगने से पहले उदीयमान सूर्य का इंतजार सभी श्रद्धालु कर रहे थे।जैसे ही सूर्य देव का उदय हुआ।छठ व्रतियों ने भगवान भास्कर को अर्घ्य देकर पूजा अर्चना की। छठ व्रतियों ने कमर तक पानी में उतरकर सूर्य नारायण को अर्घ्य दिया। छठ घाटों पर छठी मइया के भजन, गीत गूंजते रहे। व्रती महिला व पुरुषों ने सूर्यदेव को अर्घ्य समर्पित करते हुए परिवार की सुरक्षा, उन्नति और बच्चों की लंबी उम्र के लिए प्रार्थना की।पूजा के बाद 36 घंटे का व्रत पूरा किया। इसी के साथ ही चार दिन तक चले महापर्व का समापन हो गया।

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