पंचानन सिंह बगहा पश्चिमी चंपारण।
*दूर निकलना छोड़ दिया है।*
*पर ऐसा नहीं है की , चलना छोड़ दिया है ।।*फासले अक्सर रिश्तों में ,दूरी बढ़ा देते हैं। *पर ऐसा नहीं है की ,*मैंने अपनों से मिलना छोड़ दिया है।*हाँ . ज़रा अकेला हूँ , *दुनिया की भीड़ में।*
*पर ऐसा नही की ,*मैंने अपनापन छोड़ दिया है*याद करता हूँ अपनों को,परवाह भी है मन में!*बस , कितना करता हूँ , *ये बताना छोड़ दिया।*
*आज सुबह मेरे पास दिल का फोन आया। कहने लगा बास!-मैं तुम्हारे लिए बिना रुके, 24 घंटे चलता हूं। परंतु तुम मेरे लिए एक घंटा भी नहीं चलते –कब तक ऐसा चलेगा?अगर मैं रुक गया तो तुम गए!और अगर तुम रुके तो मैं गया। क्यों ना ऐसा करें कि साथ-साथ चलें और साथ-साथ रहें!!जीवन भर!अभी भी वक्त है! कल से तुम सिर्फ एक घंटा मेरे लिए चलो! मेरा वादा है कि मैं बिना किसी रूकावट के 24 घंटे चलता रहूंगा!
जीवन में मुसीबत के समय सभी रास्ते बंद होते हुए भी ,उम्मीद के द्वार कभी बंद नहीं होते। संसार में सबसे आखिरी उम्मीद ,प्रार्थना होती है जो अंत तक बनी रहती है।दु:ख के आंसुओं को बेचने आप या हम अगर तैयार भी रहें तब भी श्री राम के सिवाय कोई खरीदार नहीं!
मैंने अपने जीवन में बहुत दुःख सहे जिसे दूसरों ने कम अपनों ने ज्यादा दिए।मैंने सोचा मुसीबत के समय कुछ दुःखों को हल्का कर लूं व कुछ आंसू बेंच दूं ,तब हर खरीदार बोला कि अपनों के दिए तोहफे बेचा नहीं करते। इंसान का जब जेब गरम हो और पेट भरा हो तब सिद्धांतों की बातें करना अच्छा लगता है इस समय नहीं ।
संसार में स्वस्थ रहने के लिए सबसे बढ़िया दवा, “हंसी” सबसे बड़ी संपत्ति “बुद्धि” सबसे अच्छा हथियार “धैर्य” सबसे अच्छी सुविधा “विश्वास” और सबसे बड़ी बात है कि सभी नि:शुल्क है, इसके लिए हम सभी ईश्वर के आभारी हैं।