श्री दुर्गाजी के आविर्भाव की कथा -पं-भरत उपाध्याय

 

पंचानन सिंह बगहा पश्चिमी चंपारण।

बगहा।अनंतकोटि ब्रह्मांडों की अधीश्वरी भगवती श्रीदुर्गा ही सम्पूर्ण विश्व को सत्ता और स्फूर्ति प्रदान करती हैं। इन्हीं की शक्ति से ब्रह्मादि देवता उत्पन्न होते हैं, जिनसे विश्व की उत्पत्ति होती है। इन्हीं की शक्ति से विष्णु और शिव प्रकट होकर विश्व का पालन और संहार करते हैं। ये ही गोलोक में श्रीराधा, साकेत में श्री सीता, क्षीर सागर में लक्ष्मी, दक्षकन्या सती तथा दुर्गतिनाशिनी दुर्गा हैं।

शिवपुराण के अनुसार भगवती श्रीदुर्गा के आविर्भाव की कथा-

प्राचीन काल में दुर्गम नामक एक महाबली दैत्य उत्पन्न हुआ। उसने ब्रह्माजी के वरदान से चारों वेदों को लुप्त कर दिया। वेदों के अदृश्य हो जाने से सारी वैदिक क्रिया बंद हो गई। उस समय ब्राह्मण और देवता भी दुराचारी हो गए। न कहीं दान होता था, न तप किया जाता था। न यज्ञ होता था, न होम ही किया जाता था। इसका परिणाम यह हुआ कि पृथ्वी पर सौ वर्षों तक वर्षा बंद हो गई। तीनों लोकों में हाहाकार मच गया। सब लोग अत्यंत दु:खी हो गए। कुआं, बावड़ी, सरोवर, सरिता और समुद्र सभी सूख गए। सभी लोग भूख-प्यास से संतप्त होकर मरने लगे। प्रजा के महान दु:ख को देखकर सभी देवता महेश्वरी योग माया की शरण में गए।देवताओं ने भगवती से कहा, ‘‘महामाये! अपनी सारी प्रजा की रक्षा करो। सभी लोग अकाल पडऩे से भोजन और पानी के अभाव में चेतनाहीन हो रहे हैं। तीनों लोकों में त्राहि-त्राहि मची है। मां! जैसे आपने शुम्भ-निशुम्भ, चंड-मुंड, रक्तबीज, मधु-कैटभ तथा महिष आदि असुरों का वध करके हमारी रक्षा की थी, वैसे ही दुर्गमासुर के अत्याचार से हमारी रक्षा कीजिए।’’देवताओं की प्रार्थना सुनकर कृपामयी देवी ने उन्हें अपने अनंत नेत्रों से युक्त स्वरूप का दर्शन कराया! तदनंतर पराम्बा भगवती ने अपने अनंत नेत्रों से अश्रुजल की सहस्रों धाराएं प्रवाहित कीं। उन धाराओं से सब लोग तृप्त हो गए और समस्त औषधियां भी सिंच गईं।

सरिताओं और समुद्रों में अगाध जल भर गया। पृथ्वी पर शाक और फल-मूल के अंकुर उत्पन्न होने लगे। देवी की इस कृपा से देवता और मनुष्यों सहित सभी प्राणी तृप्त हो गए।उसके बाद देवी ने देवताओं से पूछा, ‘‘अब मैं तुम लोगों का और कौन-सा कार्य सिद्ध करूं ?’’

देवताओं ने कहा, ‘‘मां! जैसे आपने समस्त विश्व पर आए अनावृष्टि के संकट को हटाकर सब के प्राणों की रक्षा की है, वैसे ही दुष्ट दुर्गमासुर को मारकर और उसके द्वारा अपहृत वेदों को लाकर धर्म की रक्षा कीजिए।’’

देवी ने ‘एवमस्तु’ कहकर देवताओं को संतुष्ट कर दिया। देवता उन्हें प्रणाम करके अपने स्थान को लौट गए। तीनों लोकों में आनंद छा गया। जब दुर्गमासुर को इस रहस्य का ज्ञान हुआ, तब उसने अपनी आसुरी सेना को लेकर देवलोक को घेर लिया। करुणामयी मां ने देवताओं को बचाने के लिए देवलोक के चारों ओर अपने तेजोमंडल की एक चारदीवारी खड़ी कर दी और स्वयं घेरे के बाहर आ डटीं। देवी को देखते ही दैत्यों ने उन पर आक्रमण कर दिया।

इसी बीच देवी के दिव्य शरीर से काली, तारा, छिन्नमस्ता, श्रीविद्या, भुवनेश्वरी, भैरवी, बगलामुखी, धूमावती, त्रिपुरसुंदरी और मातंगी ये दस महाविद्याएं अस्त्र-शस्त्र लिए निकलीं तथा असंख्य मातृकाएं भी प्रकट हुईं। उन सबने अपने मस्तक पर चंद्रमा का मुकुट धारण कर रखा था। इन शक्तियों ने देखते ही देखते दुर्गमासुर की सौ अक्षौहिणी सेना को काट डाला। इसके बाद देवी ने दुर्गमासुर का अपने तीखे त्रिशूल से वध कर डाला और वेदों का उद्धार कर उन्हें देवताओं को दे दिया। दुर्गमासुर को मारने के कारण उनका दुर्गा नाम प्रसिद्ध हुआ। शताक्षी और शाकम्भरी भी उन्हीं के नाम हैं। दुर्गतिनाशिनी होने के कारण भी वे दुर्गा कहलाती हैं।

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