
उलटि पलटि लंका सब जारी ।
कूदि परा पुनि सिंधु मझारी।।
अर्थात महावीर हनुमान जी ने उलट पलट कर लंका को जला दिया। फिर वह समुद्र मे कूद पड़े।
यहाँ उलट पलट का अर्थ विद्वान् लोग प्राय:दो तरह से लेते हैँ। एक तो कि एक ओर से दूसरी ओर तक दूसरा कहा जाता है कि रावण ने शनि जी को उलटा लटका रक्खा था ताकि उसकी साढ़े साती रावण को भय प्रदान न कर सके। तब हनुमान जी ने उसके बंधन खोलकर उसे आजाद कर दिया था यानि उसे सीधा कर दिया था।
आज मै आपको एक तीसरा भाव भी बताता हूँ। जो मेरी कल्पना पर आधारित भी हो सकता है।
किसी भी व्यक्ति के घर या किसी राजा के नगर की सुख समृद्धि व भव्यता काफ़ी हद तक इस बात पर भी निर्भर रहती है कि उस व्यक्ति के घर मे वास्तु दोष कितना है।
अब लंका जो कि एक वास्तुविद, भगवान विश्वकर्मा जी के द्वारा निर्मित हुई थी, तो उसमें वास्तु दोष का होना सम्भव नहीं था।
इसीलिए वहाँ इतने पाप होते हुए भी वह एक सुखों से भरी समृद्ध नगरी थी। हर तरह से वैभवशाली थी। अन्न धन की कोई कमी नहीं थी।
हमारे हनुमान जी ज्ञान ओर बुद्धि के भंडार थे ही साथ मे, भइ सहाय सारद मै जाना, शारदा माता हर पल उनके साथ थी। वो जानते थे कि जलाने से भी लंका का कुछ नहीं बिगड़ने वाला क्योंकि वहाँ कोई भी वास्तु दोष था ही नहीं।
महावीर जी ने सबसे पहले यही किया ओर वहाँ की वास्तु स्थिति को उलट पलट कर दिया। कैसे ??
लिखा है
हरि प्रेरित तेहि अवसर चले मरुत उनचास ।
अट्टहास करि गर्जा कपि बढि लागा आकास।।
हनुमान जी की इच्छा मात्र ओर प्रभु प्रेरित होकर तेज हवाएं चलने लगि वो भी उनचास तरह की। जिनमें चक्रवाती तूफान से लेकर कड़कती बिजली तक के हर तरह के बवंडर शामिल थे।
अब तो सब बड़े बड़े वृक्ष आदि धड़ धड़ करके जमीन पर गिरने लगे। छोटे पेड़ पौधे उनको चक्रवाती हवाओं ने घुमा घुमा कर उखाड़ फेंका। मकान आदि भी धराशायी जरूर हुए होंगे। रहने सहने की सब व्यवस्था अस्त व्यस्त हो गई। हर तरफ चीख पुकार मच गई। इस तरह नगरी मे वास्तु दोष पैदा हो गया जो अनर्थ कारी ही होता है।
वास्तु शास्त्र के ज्ञाता, जिन्होंने वास्तु शास्त्र पढ़ा है वो आपको सहज ही बता सकते हैँ कि ऐसा क्यों हुआ होगा।
घरों के उत्तर पूर्व के भाग से छोटे फूलदार पौधों, गमलों आदि का टूटना ओर मकान के दक्षिण भाग कि ओर के बड़ेऔर ऊँचे पेड़ों का अचानक उखड़ कर गिरना भय प्रदान करने वाला होता है,और यहाँ तो हवा के साथ आग का तांडव भी हो रहा था। वृक्षों मे आग भी जरूर लगी होगी।
मेरी समझ से इस उलट पलट की चौपाई का ये भी एक भाव है।
अगले लेख मे चर्चा करेंगे कि क्या लंका सोने की थी या इसके कोई और मायने थे।
इस पर चर्चा इसलिए भी जरूरी है क्योंकि एक दिन एक व्यास गद्दी पर बैठे विद्वान् ये कह रहे थे प्रवचन मे,कि ज़ब लंका जली तो उसका सब सोना बहने लगा और वह समुद्र मे आकर मिल गया।इसका मतलब क्या वहाँ के घरों की दीवारें भी ईंट की जगह सोने से निर्मित थी ??