गंडक नदी के कौलेश्वर घाट त्रिवेणी संगम तट, कालीघाट, लवकुश घाट एवं बेलवा घाट पर पर मौन हो श्रद्धालुओं ने लगाई आस्था की डुबकी

 

सँजय प्रसाद वाल्मीकिनगर प.चम्पारण।

माघ महीने के अमावस्या तिथि को लगने वाला मौनी अमावस्या गंगा स्नान के लिए वाल्मीकिनगर में शुक्रवार की अहले सुबह लगभग 1.50 लाख श्रद्धालुओं ने आस्था की डुबकी लगा दान – पुण्य किया। प्रत्येक साल मौनी अमावस्या को लगने वाले इस गंगा स्नान में बिहार, उत्तर प्रदेश एवं नेपाल से भारी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। कालीघाट, लवकुश घाट, बेलवा घाट, एवं कौलेश्वर घाट पर नाविकों द्वारा सुरक्षा के मद्देनजर पेट्रोलिंग किया जा रहा था। पुलिस प्रशासन तथा सीमा सुरक्षा में तैनात एसएसबी के जवानों द्वारा श्रद्धालुओं के सुरक्षा के लिए कड़ी निगरानी की जा रही थी। महिला एवं पुरुष जवानों को सादे लिबास में जगह जगह तैनाती की गई थी। वाल्मीकिनगर से सटे सभी गांवों में श्रद्धालुओं की भीड़ देख स्थानीय लोग भी उनके रहने एवं भोजन के लिए व्यवस्था करने में लगे रहे। स्थानीय लोगों की मानें तो इस साल की भीड़ ऐतिहासिक रही है।इस साल लगभग 500 की संख्या में ट्रैक्टर,300 टेंम्पू लगभग 100 की संख्या में बसें आई थी।इसके अतिरिक्त अन्य चार पहिया वाहनों की संख्या अलग है।ये आंकड़ा मेला के ठेकेदारों द्वारा काटी गई परची से प्राप्त किया गया है।
25 हजार भारतीय श्रद्धालुओं ने नेपाल क्षेत्र में लगाई डुबकी –:माघ मौनी अमावस्या गंगा स्नान के लिए वाल्मीकिनगर आए श्रद्धालुओं में लगभग 25 हजार लोग नेपाल क्षेत्र के त्रिवेणी घाट पर मौन हो डुबकी लगाया। स्नान करने के बहाने नेपाल का भ्रमण करना भी इसके पीछे मुख्य कारण रहा। हालांकि भारत और नेपाल की सीमा एक दूसरे से सटा हुआ है, फिर भी नेपाल में स्नान करने के लिए लोग पहुंचते हैं। नेपाल के घाटों पर स्नान करने वालों में अधिकतर नेपाली नागरिक होते हैं।
पेयजल एवं शौचालय की समस्या से श्रद्धालुओं को होना पड़ा दो चार –: गंगा स्नान के लिए आए हुए श्रद्धालुओं के सुरक्षा एवं रहने के लिए सभी सुविधाएं उपलब्ध थी। परन्तु वाल्मीकिनगर में आने वाले पर्यटकों को पेयजल एवं शौचालय नहीं से काफी परेशानियां उठानी पड़ती है। श्रद्धालु पानी एवं शौचालय की तलाश में इधर-उधर भटकते फिरते हैं।खाना बनाने से लेकर शौच क्रिया से निवृत्त होने के लिए लोग सड़कों का इस्तेमाल करने में संकोच नहीं करते। सबसे ज्यादा परेशानी महिला श्रद्धालुओं को होती है। इस असुविधा को लेकर विभिन्न जगहों से आने वाले श्रद्धालु सरकारी तंत्र और स्थानीय जनप्रतिनिधियों को इसका जिम्मेवार ठहराते हैं। समाचार प्रेषण तक कहीं से भी कोई अप्रिय घटना की सूचना नहीं मिल पाई थी।

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