विजयादशमी का पूरा दिन स्वयंसिद्ध मुहूर्त है-पं०भरत उपाध्याय

 

*विजयादशमी के दस सूत्र*

दस इन्द्रियों पर विजय का पर्व है।

असत्य पर सत्य की विजय का पर्व है।

बहिर्मुखता पर अंतर्मुखता की विजय का पर्व है।

अन्याय पर न्याय की विजय का पर्व है।

दुराचार पर सदाचार की विजय का पर्व है।

तमोगुण पर दैवीगुण की विजय का पर्व है।

दुष्कर्मों पर सत्कर्मों की विजय का पर्व है।

भोग पर योग की विजय का पर्व है।

असुरत्व पर देवत्व की विजय का पर्व है।

जीवत्व पर शिवत्व की विजय का पर्व है।

*विजयादशमी के दिन अपने मन में जो रावण के विचार हैं काम, क्रोध, लोभ, मोह, भय, शोक, चिंता – इन अंदर के शत्रुओं को जीतना है और रोग,अशांति जैसे बाहर के शत्रुओं पर भी विजय पानी है।दशहरा हमे यही संदेश देता है।*

*दशहरे की संध्या को भगवान को प्रीतिपूर्वक भजें और “ॐकार” का जप करें।’*

*‘ॐ’ का जप करने से देवदर्शन, लौकिक कामनाओं की पूर्ति, आध्यात्मिक चेतना में वृद्धि, साधक की ऊर्जा एवं क्षमता में वृद्धि और जीवन में दिव्यता तथा परमात्मा की प्राप्ति होती है।*

विजयदशमी पर दो विशेष प्रकार की वनस्पतियों के पूजन का महत्त्व है-

एक है शमी वृक्ष, जिसका पूजन रावण दहन के बाद करके इसकी पत्तियों को स्वर्ण पत्तियों के रूप में एक-दूसरे को ससम्मान प्रदान किया जाता है। इस परंपरा में विजय उल्लास पर्व की कामना के साथ समृद्धि की कामना करते हैं।

दूसरा है अपराजिता (विष्णु-क्रांता)। यह पौधा अपने नाम के अनुरूप ही है। यह विष्णु को प्रिय है और प्रत्येक परिस्थिति में सहायक बनकर विजय प्रदान करने वाला है।

नीले रंग के पुष्प का यह पौधा भारत में सुलभता से उपलब्ध है। घरों में समृद्धि के लिए तुलसी की भाँति इसकी नियमित सेवा की जाती है l

प्रभु श्री राम आपको और आपके परिवार को शांति, सुख-समृद्धि, मान-सम्मान, यश-कीर्ति प्रदान करें, ईश्वर से हमारी यही प्रार्थना है !!!

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