कार्तिक में दीपदान कहाँ करें -पं-भरत उपाध्याय

 

पंचानन सिंह बगहा पश्चिमी चंपारण।

*लिंगपुराण के अनुसार*

*कार्तिके मासि यो दद्याद्धृतदीपं शिवाग्रतः।।*

*संपूज्यमानं वा पश्येद्विधिना परमेश्वरम्।।*

*जो कार्तिक महिने में शिवजी के सामने घृत का दीपक समर्पित करता है अथवा विधान के साथ पूजित होते हुए परमेश्वर का दर्शन श्रद्धापूर्वक करता है, वह ब्रह्मलोक को जाता है।*

*यो दद्याद्धृतदीपं च सकृल्लिंगस्य चाग्रतः।।*

*स तां गतिमवाप्नोति स्वाश्रमैर्दुर्लभां रिथराम्।।*

*जो शिव के समक्ष एक बार भी घृत का दीपक अर्पित करता है, वह वर्णाश्रमी लोगों के लिये दुर्लभ स्थिर गति प्राप्त करता है।*

*आयसं ताम्रजं वापि रौप्यं सौवर्णिकं तथा।।*

*शिवाय दीपं यो दद्याद्विधिना वापि भक्तितः।।*

*सूर्यायुतसमैः श्लक्ष्णैर्यानैः शिवपुरं व्रजेत्।।*

*जो विधान के अनुसार भक्तिपूर्वक लोहे, ताँबे, चाँदी अथवा सोने का बना हुआ दीपक शिव को समर्पित है, वह दस हजार सूर्यों के सामान देदीप्यमान विमानों से शिवलोक को जाता है।*

*अग्निपुराण के 200 वें अध्याय के अनुसार*

*जो मनुष्य देवमन्दिर अथवा ब्राह्मण के गृह में एक वर्ष दीपदान करता है, वह सबकुछ प्राप्त कर लेता है।*

*कार्तिक में दीपदान करने वाला स्वर्गलोक को प्राप्त होता है।*दीपदान से बढ़कर न कोई व्रत है, न था और न होगा ही।*दीपदान से आयु और नेत्रज्योति की प्राप्ति होती है।*दीपदान से धन और पुत्रादि की प्राप्ति होती है।*दीपदान करने वाला सौभाग्ययुक्त होकर स्वर्गलोक में देवताओं द्वारा पूजित होता है।*

*एकादशी को दीपदान करने वाला स्वर्गलोक में विमान पर आरूढ़ होकर प्रमुदित होता है।*

*दीपदान कैसे करें*

*मिट्टी, ताँबा, चाँदी, पीतल अथवा सोने के दीपक लें। उनको अच्छे से साफ़ कर लें। मिटटी के दीपक को कुछ घंटों के लिए पानी में भिगो कर सुखा लें। उसके पश्च्यात प्रदोषकाल में अथवा सूर्यास्त के बाद उचित समय मिलने पर दीपक, तेल, गाय घी, बत्ती, चावल अथवा गेहूँ लेकर मंदिर जाएँ। घी में रुई की बत्ती तथा तेल के दीपक में लाल धागे या कलावा की बत्ती इस्तेमाल कर सकते हैं। दीपक रखने से पहले उसको चावल अथवा गेहूं अथवा सप्तधान्य का आसन दें। दीपक को भूल कर भी सीधा पृथ्वी पर न रखें क्योंकि कालिका पुराण का कथन है ।*

**दातव्यो न तु भूमौ कदाचन।* *सर्वसहा वसुमती सहते न त्विदं द्वयम्।।*

*अकार्यपादघातं च दीपतापं तथैव च। तस्माद् यथा तु पृथ्वी तापं नाप्नोति वै तथा।।*

*अर्थात सब कुछ सहने वाली पृथ्वी को अकारण किया गया पदाघात और दीपक का ताप सहन नही होता ।*

*उसके बाद एक तेल का दीपक शिवलिंग के समक्ष रखें और दूसरा गाय के घी का दीपक श्रीहरि नारायण के समक्ष रखें। उसके बाद दीपक मंत्र पढ़ते हुए दोनों दीप प्रज्वलित करें। दीपक को प्रणाम करें। दारिद्रदहन शिवस्तोत्र तथा गजेन्द्रमोक्ष का पाठ करें।*

*पाँच दिन जरूर जरूर करें दीपदान*

*अगर किसी विशेष कारण से कार्तिक में प्रत्येक दिन आप दीपदान करने में असमर्थ हैं तो पांच विशेष दिन जरूर करें।*

*पद्मपुराण, उत्तरखंड में स्वयं महादेव कार्तिकेय को दीपावली, कार्तिक कृष्णपक्ष के पाँच दिन में दीपदान का विशेष महत्व बताते हैं:*

*कृष्णपक्षे विशेषेण पुत्र पंचदिनानि च*

*पुण्यानि तेषु यो दत्ते दीपं सोऽक्षयमाप्नुयात्*

*बेटा! विशेषतः कृष्णपक्ष में 5 दिन (रमा एकादशी से दीपावली तक) बड़े पवित्र हैं। उनमें जो भी दान किया जाता है, वह सब अक्षय और सम्पूर्ण कामनाओं को पूर्ण करने वाला होता है।*

*तस्माद्दीपाः प्रदातव्या रात्रावस्तमते रवौ*

*गृहेषु सर्वगोष्ठेषु सर्वेष्वायतनेषु च*

*देवालयेषु देवानां श्मशानेषु सरस्सु च*

*घृतादिना शुभार्थाय यावत्पंचदिनानि च*

*पापिनः पितरो ये च लुप्तपिंडोदकक्रियाः*

*तेपि यांति परां मुक्तिं दीपदानस्य पुण्यतः*

*रात्रि में सूर्यास्त हो जाने पर घर में, गौशाला में, देववृक्ष के नीचे तथा मन्दिरों में दीपक जलाकर रखना चाहिए। देवताओं के मंदिरों में, श्मशान में और नदियों के तट पर भी अपने कल्याण के लिए घृत आदि से पाँच दिनों तक दीप जलाने चाहिए। ऐसा करने से जिनके श्राद्ध और तर्पण नहीं हुए हैं, वे पापी पितर भी दीपदान के पुण्य से परम मोक्ष को प्राप्त होते हैं।

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