भाईयों ने मिलकर वन और राज्य, दोनों में जीवन को सर्वश्रेष्ठ बना दिया -पं-भरत उपाध्याय

पंचानन सिंह बगहा पश्चिमी चंपारण।

बगहा 24 अक्तूबर।हम अपने जीवन में न जाने कितने लोगों से संबंध जोड़ते हैं व्यापार के लिए, आजीविका के लिए, बड़ा बनने के लिए और तमाम तरह के जो उद्यम हैं, उनके विकास के लिए, लेकिन उन संबंधों की कोई औकात नहीं है भ्रातृत्व के सामने। इसलिए भ्रातृत्व की रक्षा के लिए हमें बहुत सचेत होने की आवश्यकता है। यदि भ्रातृत्व सशक्त हुआ, तो हमारा भरपूर विकास होगा। परिवार का होगा, राज्य का और देश-दुनिया का होगा।

*सोचकर देखिए, यदि राम जी नहीं होते, तो भरत जी का कार्य कैसे चलता ? भरत जी नहीं होते, तो राम जी का कार्य कैसे चलता ? यदि लक्ष्मण नहीं होते, तो कैसे कार्य चलता ? भरत न होते और १४ वर्ष तक राम जंगल में रहते, तो अयोध्या की क्या दशा होती? भाइयों ने मिलकर वन और राज्य, दोनों में जीवन को श्रेष्ठतंम बना दिया। एक-दूसरे के लिए समर्पित होकर ये ऐसे भाई बने कि संसार के लिए उदाहरण बन गए।*

एक प्रसंग है। जब भरत जी मनाने गए, तो जनक जी ने भरत जी की खूब प्रशंसा की। इतनी बड़ाई रामचरितमानस में किसी की नहीं हुई है, जितनी जनक जी ने की। जनक जी ने सुनयना जी से कहा, भरत जी की कथा संसार के बंधन से छुड़ाने वाली है। भरत जी के समान बस, भरत जी ही हैं, ऐसा जानों। भरत जो बोलते हैं, वह धर्म है; भरत जैसा आचरण करते हैं, वह धर्म है; धर्म के मानक पुरुष हैं भरत। यह सब जानकर राम जी बहुत खुश हुए कहा, मेरे जीवन की यह बड़ी उपलब्धि है कि मेरे भाई के लिए ज्ञान के भण्डार जनक जी इतनी अनुशंसा कर रहे हैं। मुझे गौरव है भरत का भाई होने का। आज अगर मंच पर कोई बड़े नेता के सामने छोटे नेता की अधिक प्रशंसा कर दे, तो पार्टी उस छोटे नेता को निकाल बाहर करेगी। दूसरे की प्रशंसा सुनकर लोगों को ईर्ष्या होने लगती है। सहिष्णुता समाप्त हो गई है। भाई को भिन्न समझने लगे हैं लोग, ऐसे कैसे संबंध चलेगा ?

*मैं सभी लोगों को आग्रह करना चाहता हूं कि भ्रातृत्व को गरिमा देने की आवश्यकता है। संसार को भ्रातृत्व की आवश्यकता है। जिस भ्रातृत्व के बिना हमारा कोई व्यवहार नहीं चलता, कोई बड़प्पन नहीं चलता, विकास का कोई मार्ग प्रशस्त नहीं होता, उसको किसी भी स्तर पर बिगड़ने नहीं देना चाहिए और इसके लिए संपूर्ण सामग्री हमें रामचरितमानस, वाल्मीकि रामायण, अध्यात्म रामायण और अन्य रामायणों से मिलती है।*

यदि कोई अपने जीवन में राम राज्य की स्थापना करना चाहता है, तो वह अपने उच्च व्यवहार से भरत की तरह भ्राता प्राप्त करे और भरत जैसा भ्राता प्राप्त करने के लिए राम जैसा भ्राता बने। लोलुपता का त्याग करे, सहिष्णु बने। राम जी के समान श्रेष्ठ भावों का स्रोत होने की आवश्यकता है। भ्रातृत्व के लिए अच्छा परिवेश बनाने की आवश्यकता है।

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