पंचानन सिंह बगहा पश्चिमी चंपारण।
बगहा 28 अक्तूबर। दीपावली बौद्ध धर्म मे भी मनाया जाता रहा है। उनकी मान्यता है कि इसी दिन महात्मा बुद्ध अठारह वर्षों बाद अपने नगर कपिलवस्तु में लौट कर आये थे। उसी घटना की याद में बौद्ध धर्मावलंबी दीवाली मनाते हैं। तो क्या वही दीवाली का सबसे प्राचीन इतिहास है? नहीं!
उससे भी पीछे चलते हैं। दीपावली जैन धर्मावलंबियों के लिए भी एक महत्वपूर्ण पर्व है। उनकी मान्यता के अनुसार इसी दिन भगवान महाबीर जी को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। जैनियों के लिए यह मोक्ष का उत्सव है। पर वह भी सबसे प्राचीन इतिहास नहीं। उसके भी आगे चलिये।
हमारा इतिहास कहता है कि कार्तिक कृष्णपक्ष की चतुर्दशी के दिन भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध किया सो अगले दिन सबने दीपावली मनाई। ठीक है। तो क्या उसके पहले दीपावली नहीं मनाई जाती थी? बिल्कुल मनाई जाती थी।
हमारा इतिहास कहता है कि रावण से युद्ध जीतने के बाद भगवान श्रीराम माता सीता, भइया लक्ष्मण और अपने सहयोगियों संग जब अयोध्या लौटे, तो अयोध्यावसियों ने दीपावली मनाई थी। किंतु भगवान श्रीराम तो चैत्र महीने की षष्टी तिथि को अयोध्या वापस आये थे। फिर कार्तिक महीने की अमावश्या को दीपावली मनाने की परम्परा कैसे शुरू हुई? कहीं ऐसा तो नहीं कि यह परम्परा उससे भी पुरानी हो। बहुत ही प्राचीन…
शास्त्र कहते हैं कि समुद्र मंथन के समय इसी दिन माता लक्ष्मी का प्राकट्य हुआ था। सो जगतमाता के प्राकट्य दिवस होने के कारण उस दिन समग्र संसार दीपावली मनाता है और उनकी पूजा करता है। यह भी सही है। माता लक्ष्मी सौभाग्य की देवी हैं। धन, वैभव, सौभाग्य, आरोग्य… यह प्राप्त हो जाय तो जीवन का हर दिन दीवाली है। तो माता के प्राकट्य दिवस को उत्सव क्यों न बनाएं?
अब तनिक अलग अलग संस्कृति और परम्पराओं वाले वनवासी समुदाय की दीपावली के बारे में जान लीजिये। कश्मीर से कन्याकुमारी तक वनवासियों की असँख्य संस्कृतियां विराजती हैं। दीपावली सबमें कॉमन है। और कॉमन है दीप दान की परम्परा… कथाएं अलग अलग हैं, पर दीपक सभी जगह है। तमसो मा ज्योतिर्गमय की प्रार्थना सब जगह है…
वस्तुतः दीपों से अपने घर आंगन को सजाने की परम्परा भारत में बहुत प्राचीन है। बहुत ही प्राचीन! जब भी कोई शुभ अवसर आता तो प्राचीन लोग अपने घरों को दीप मालिकाओं से सजा देते। यह किसी एक घटना के कारण प्रारम्भ हुई परम्परा नहीं है, यह परम्परा उतनी ही प्राचीन है, जितने प्राचीन हैं हम… जितना प्राचीन है सत्य सनातन धर्म…
सभ्यताएं प्रकाश बांटती हैं। यही उनका धर्म होता है। प्रकाश ज्ञान का, प्रेम का, धर्म का, सद्भाव का, करुणा, दया, क्षमा… हर व्यक्ति को अंधेरे से उजाले की ओर ले जाने का भाव, कृण्वन्तो विश्व आर्यम का भाव… बस इसी भाव का नाम दीवाली है।
तो अपने चारों ओर प्रकाश बांटिए! धर्म का प्रकाश… आप सब के भीतर हैं वशिष्ठ, विश्वामित्र या संदीपनी… अधर्म की ओर मुड़ चुके व्यक्ति को पुनः धर्म से जोड़ना ही दीवाली मनाने का सर्वश्रेष्ठ तरीका होगा।