पंचानन सिंह बगहा पश्चिमी चंपारण।
*एक सेठ जी थे काफी बूढ़े हो गए थे दाना दलने की एक चक्की थी उनकी दूकान पर बैठे थे बूढ़े होने पर भी दाना दल रहे थे दलते जाते, कहते जाते- “इस जीवन से तो मौत अच्छी है ।*
*इसी समय एक साधु दूकान के पास से होकर निकले उन्होंने सेठ जी के ये शब्द सुने, सोचा कितना दुखी है यह व्यक्ति ! इसकी सहायता करनी चाहिये।*
*उसके पास जाकर बोले –सेठ बहुत दुखी लगता है तू ! मेरे पास एक विद्या है ! यदि तू चाहे तो तुझे स्वर्ग ले जा सकता हूँ चलता है तो चल! यहाँ के दुखों से छुटकारा मिल जायगा ।*
*सेठ ने साधु की और देखा; बोला “बहुत दयावान हो तुम, परन्तु मैं जा कैसे सकता हूँ? इतना बुढा हो गया अभी तक कोई संतान नहीं हुई संतान हो जाय तो चलूँगा अवश्य।*
*साधु ने कहा बहुत अच्छा और चला गया कुछ वर्षों बाद सेठ के दो बेटे पैदा हो गये साधु ने वापस आकर कहा-चलो सेठ ! अब तो तुम्हारी सन्तान हो गई” सेठ ने कहा –“हाँ हो तो गई, परन्तु अभी तक वह किसी योग्य तो नहीं लड़के तनिक बड़े हो जाएँ, तब तुम आना मैं अवश्य चलूँगा।*
*लड़के बड़े हो गये साधु फिर आया तो सेठ नहीं था पूछा उसने की सेठ कहाँ हैं ? तो पता लगा की मर गये हैं । साधु ने योग बल से देखा कि मर कर वह गया कहाँ ? तो उसने पता लगाया कि दूकान के बाहर जो बैल बंधा है, वही पिछले जन्म का सेठ है । उसके पास जाकर साधु ने कहा – अब चलेगा स्वर्ग को ?*सेठ (बैल) ने सर हिला कर कहा- “कैसे जाऊँ बच्चे अभी नासमझ हैं मैं चला गया तो कोई दूसरा बैल ले आयेंगे जितनी अच्छी प्रकार से मैं बोझ उठता हूँ, उतनी अच्छी प्रकार से दूसरा बैल बोझ नहीं उठाएगा तो मेरे बच्चों को हानि हो जायेगी ना भाई अभी तो मैं नहीं जा सकता, कुछ देर और ठहर जा।*
*पांच वर्ष व्यतीत हो गये साधु फिर वापस आया देखा- दूकान के सामने अब बैल नहीं है । दूकान के मालिकों ने एक ट्रक खरीद लिया है । उसने इधर उधर से पूछा कि बैल कहाँ गया ? ज्ञात हुआ, बोझ ढोते ढोते मर गया।*
*साधु ने फिर अपने योग बल का प्रयोग करके पता लगाया तो पता लगा कि- कि वह सेठ अपने ही घर के द्वार पर कुत्ता बन कर बैठा है साधु ने उसके पास जाकर कहा _ अब तो बोझ ढोने कि बात भी नहीं रही अब चल तुझे स्वर्ग ले चलूँ।*
*कुत्ते के शरीर में बैठे सेठ ने कहा- अरे कैसे ले चलेगा ! देखता नहीं कि मेरी बहु ने कितने आभूषण पहन रखे हैं? मेरे लड़के घर में नहीं हैं, यदि कोई चोर आ गया तो बहु को बचायेगा कौन? नहीं बाबा! तुम जाओ, अभी मैं नहीं जा सकता।*
*साधू चला गया*
*एक वर्ष बाद उसने वापस आकर देखा कि कुत्ता भी मर गया है । उस साधु ने अपने योग बल द्वारा पुनः उस सेठ को खोजा तो ज्ञात हुआ कि वह अपने घर के पास बहने वाली गन्दी नाली में कीड़ा बन के बैठा है । साधु ने उसके पास जाकर कहा- “देखो सेठ! क्या इससे बड़ी दुर्गति भी कभी होगी? कहाँ से कहाँ पहुँच गये तुम ! अब भी मेरी बात मानो।*
*आओ तुम्हें स्वर्ग ले चलूँ” कीड़े के शरीर में बैठे सेठ ने चिल्ला कर कहा – “चला जा यहाँ से ! क्या मैं ही रह गया हूँ स्वर्ग जाने के लिए ? उनको ले जा मुझको यहीं पड़ा रहने दे यहाँ पोतों पोतीओं को आते जाते देख कर प्रसन्न होता हूँ स्वर्ग में क्या मैं तेरा मुख देखा करूँगा ?*
*यह है मोह के चक्र में फंसे रहने का परिणाम यह मोह का चक्र आत्मा को नीचे ही नीचे ढकेलता चला जाता है । नहीं! इस प्रकार के कर्म मत करो ! कर्म करो अवश्य, परन्तु मोह और ममता से परे हट कर ।*