पंचानन सिंह बगहा पश्चिमी चंपारण।
बगहा।यह बहुत आम बात हो गईं है कि आज समाज को तोड़ना है तो बस एक वाक्य काफी है *मनुवादी*मनुवाद है क्या? कभी किसी ने इसपर विचार किया है या बस यूं हीं मान लिया! यह भी एक विचारणीय पहलू है। मनुवाद आया कहां से तो यह जान लीजिये, आज जिस मनुवाद कि चर्चा हो रही है इसकी उत्पत्ती का श्रोत ,मनु संहिता ग्रन्थ है। जिसके आधार पर आपको यह कहा जाता है कि यह मनुवादी है। सबसे अच्छी बात यह है कि यह एक पुस्तक है और कहा जाता है कि सबसे अच्छा मित्र अगर कुछ है तो वह है पुस्तक है, और सर्व सुलभ है कोई पढ़ सकता है, किसी की निजी सम्पत्ति नहीं है या किसी लॉकर या तिजोरी मे बंद भी नहीं है। इसको आप स्वयं पढ़े बिना किसी दुर्भावना से ग्रसित कैसे हो सकते है। पहले पढ़ें फिर विचार करें ।आज से हजारों वर्ष पहले शिक्षा की स्थिति क्या थी! संसाधन क्या थे हमारी पहुंच कितनी थी क्या उस जमाने मे चांद पर जाना सम्भव था। फिर भी सभी पहलू को समाहित करते हुए एक समृद्ध समाज कि स्थापना का यह समाजशास्त्र कुछ षड़यंत्रकारियों की वजह से हमको निचा दिखाने का साधन बन गया है। कहते है हमको बाटने के लिए बणिक बना दिया अनेक जातियां बना दी गईं निचा दिखाने के लिए धोबी बना दिया, चमार बना दिया, नाई बना दिया, हलवाई, लोहार, बढ़ई बना दिया क्या क्या भ्रान्ति फैलाई गईं कितना लिखा जाय! लेकिन आपको इन सब का संदर्भ समझना होगा आपमें हीन भावना भरकर दूसरे लोगो ने इसको धीरे धीरे आप से छीन लिया आज देखिये जिसपर आपका एकाधिकार होना चाहिए उसपर कोई और काबिज है और आप उसके नौकर बन गए हैं। जरा एकबार गौर से अपनी पारम्परिक उस कारोबार को तो देखिये। सबने अपने अतीत को छोड़ा है और किसी और ने उसे अपना लिए आज वह किंगमेकर है और हम उसके नौकर। शुरुआत ब्राह्मणो से हीं करते है शिक्षा देना ब्राह्मणो को मिला लेकिन सभी शैक्षणिक संस्थान किसी और के हैं सुरक्षा का अधिकार क्षत्रिय को मिला लेकिन सभी आयुध उद्योग कारोबार किसी और के पास है, हिसाब बही खाता कायस्थ को मिला लेकिन किसी और ने कब्जा कर लिया, वाणिज्य का भी वही हाल है आप विक्रेता मात्र रह गए मुलरूप से एकाधिकार किसी और का है कहते है ब्रांड है। तेली समाज ने छोड़ा आज इसकी भी स्थिति देख लीजिये धोबी, नाई, हलवाई, लोहार, बढ़ई सब आज अपने मूल अधिकार से विमुख हैं और जिसपर आपका कॉपी राइट था उसपर किसी और ने अपना नाम दर्ज करा लिया है। चमड़ा उद्योग को लजिये कितनी हीनभवना से ग्रसित है हम खुद को चमार नहीं कह सकते क्योंकि हमरा कारोबार जीवन यापन चमड़ा से जुड़ा हुआ था, लेकिन वही किसी और ने आप से छीन लिया और आप नौकरी करते हैं। यही है मनुवादी व्यवस्था का सत्य जिसको आपसे छिनने के लिए आपको निचा दिखाने के लिए छला गया और आप आज भी उसी भ्रम मे उलझें हुए है। सबका एक हीं समाधान है *बंटोगे तो कटोगे*
बाटने वाले कब हमको बांट गए हमें पता हीं नहीं चला क्योंकि हमारे रहनुमा भी उनके हीं दल मे शामिल थे। यह राजनीती नहीं सच्चाई है इस स्लोगन पर गौर कीजिये और अपने जीवन मे उतारीए ।