
पंचानन सिंह बगहा पश्चिमी चंपारण।
*बंदऊ प्रथम भरत गुरु चरना।जासु नेम व्रत जाई न बरना।।*
*गुरु जी के आदेश से यह विशेषांक प्रस्तुत है।*
जनवरी,माह ,2025 (भाग – 1 ) क्रमशः ……
प्रायः “मांगलिक दोष” को लेकर आम जनमानस में भ्रांतियां व्यापक रूप से फ़ैली हुई है ! तथाकथित ज्योतिषी / अन्य वर्ग भी “मांगलिक दोष ” के नाम पर जनता का गलत दुरुपयोग करते है । विगत कई माह में कुछेक ऐसा विषय सामने आया कि जिससे हृदय द्रवित हो उठा ! घटनाएं मस्तिष्क पर प्रभाव डालती हैं जिसे देखकर, सुनकर मन मे यह विचार आया कि “मांगलिक दोष ” की विस्तृत जानकारी जनमानस में प्रसारित करू ? कुंडली मेलापक एवं विवाह में यह योग बहुप्रसिद्ध है। सर्वविदित यह योग, दोष से सभी सुपरिचित है। भूमिका की विशेष आवश्यकता नहीं है। अतिव्यस्तता के बावजूद मकर संक्रांति एवं मंगलवार सुदिन होने से यह “संकल्प” हुआ कि जनवरी माह में मांगलिक दोष, कारण, निवारण की सम्यक जानकारी ज्योतिष प्रेमियों को दिया जाए , साथ हि साथ प्रत्येक माह में एक – एक “विशेषांक” भी प्रसारित किया जाए ।जिससे ज्योतिष जिज्ञासु , अध्यात्म , सनातन धर्म की प्रमाणिकता बनी रहे ! समयानुकूल यह निर्णय सकारात्मक एवं जनमानस के साथ ज्योतिष प्रेमियों के लिए लाभकारी हो, पाठक गण इसका भरपूर लाभ लें ! निकटतम भविष्य में यह पुस्तक का रूप भी होगा ,किन्तु वर्तमान समय सोशल मीडिया का है अतः वर्तमान समयानुकूल सोशल मीडिया के प्लेटफार्म पर जुड़कर आप सभी ज्योतिष प्रेमी , नवीनतम ज्योतिष के छात्र व प्रेमीजन मांगलिक विशेषांक अन्तर्गत , मांगलिक विषय की सम्यक जानकारी प्राप्त करें ! एवं अन्य प्रेमियों को भी प्रेषित करें ! इस सदसंकल्प के साथ प्रस्तुत है – ज्योतिष जगत का एक अतिविशिष्ट योग मांगलिक योग जिसे हमने विशेषांक का रूप दिया हैं। “मांगलिक विशेषांक” आशा है सुधि पाठकगण गम्भीरता के साथ इस “विशेषांक” को पढ़ेंगे, एवं “मांगिलक दोष” , कारण , निवारण आदि को यथार्थ से समझेंगे!
*मंगली – दोष*
“लग्ने व्यये च पाताले जामित्रे चाष्टये कुजे ।
स्त्रीणां भर्तृविनाशः स्यात् पुसां भार्या विनश्यति” ।।
मंगली दोष के विषय में अत्यन्त सरल एवं स्पष्ट है कि पुरुष की कुण्डली में लग्न, द्वादश, चतुर्थ, सप्तम व अष्टम भाव मंगल द्वारा प्रभावित होते है तो “मंगल” दोष स्थित होता है । अर्थात् उस पुरुष को मंगला कहा जाता है और कन्या की कुण्डली में भी इन्हीं स्थान अर्थात् लग्न, द्वादश, चतुर्थ, सप्तम व अष्टम स्थान में मंगल स्थित हो तो मंगली कही जाती है । परन्तु अन्य ऋषियों के मतानुसार इसके अतिरिक्त द्वितीय पंचम स्थान में मंगल स्थित हो तो मंगली दोष होता है । दक्षिण भारत मे द्वितीय / पंचम भी विचारणीय होता है। परन्तु महर्षि पराशरोक्त मतानुसार यदि मंगल लग्न द्वादश, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम स्थान में स्थित हो और शुभ ग्रह से अदृष्ट अर्थात् शुभ ग्रहों से देखा नहीं जाता हो तो कन्या पति को मारने वाली, (पति की मृत्यु ) होती है ।